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कल्याण डोम्बिवली में शिंदे पिता-पुत्र की स्वार्थपूर्ण राजनीति का शिकार, निर्दलीय नामांकन से बढ़ा राजनीतिक संकट|

 

 

कल्याण (विनोद तिवारी)

कल्याण डोम्बिवली शहर पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक अस्थिरता और विकास के मुद्दों का सामना कर रहा है। इसका मुख्य कारण शिवसेना के नेता शिंदे का स्वार्थपूर्ण राजनीतिक दृष्टिकोण है। विधानसभा चुनावों के निकट आते ही, शिवसेना के शिंदे गुट के कई नेताओं ने न केवल पार्टी का साथ छोड़ा, बल्कि महायुती के उम्मीदवार के विरोध में निर्दलीय नामांकन भरकर यह संकेत दे दिया कि शिंदे पिता-पुत्र की स्वार्थ की राजनीति के कारण उनका राजनीतिक अस्तित्व संकट में है।

जब शिवसेना के दोनों गुट से जुड़े नेता शहर के विकास की कमी, निम्न नागरिक सुविधाओं और बढ़ते अपराधों की चर्चा करते हैं, तो वे यह बताना भूल जाते हैं कि कल्याण डोम्बिवली शहर की मनपा पर पिछले 20 वर्षों से शिवसेना का शासन रहा है। पिछले 10 वर्षों से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का प्रभाव बना हुआ है। मनपा के हर ठेके और बड़े अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति शिंदे के निर्देश पर ही होती है। यह उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2014 से जून 2022 तक ठाणे जिले के पालक मंत्री शिंदे रहे हैं, और मुख्यमंत्री बनने के बाद ठाणे जिले का पालकमंत्री का पद भाजपा विधायक  विधायक रविंद्र चौहान को न देकर, अपने अधीन काम करने वाले शंभूराज देसाई को सौंप दिया गया है। राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में यह आम चर्चा है कि भले ही पालकमंत्री का पद देसाई को दिया गया है, लेकिन ठाणे जिले से हर प्रशासनिक निर्णय सांसद श्रीकांत शिंदे ही लेते हैं।

सत्तापरिवर्तन के समय से ही शिंदे पिता-पुत्र ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए शहर के सभी प्रमुख नेताओं पर साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग कर उन्हें अपने पक्ष में शामिल कर लिया। भाजपा से अविश्वास को भांपते हुए, लोकसभा चुनाव के समय सांसद श्रीकांत शिंदे को चुनाव जिताने के लिए हर विधानसभा में नेताओं को पार्टी की उम्मीदवारी का आश्वासन दिया गया। यहां तक कि मनसे पार्टी से भी गठबंधन किया गया। स्थानीय नेताओं ने शिंदे साहब के प्रति विश्वास जताते हुए विधानसभा चुनाव की तैयारी में दिन-रात मेहनत की और करोड़ों रुपये चुनाव शुरू होने से पहले ही खर्च कर दिए। अब जब चुनाव का समय आया और उम्मीदवारी नहीं मिली, तो कल्याण डोम्बिवली में शिंदे के कई करीबी नेताओं ने अपने राजनीतिक जीवन और सम्मान को बचाने के लिए किसी अन्य पक्ष से उम्मीदवारी लेने या निर्दलीय के रूप में नामांकन करने में ही अपनी भलाई समझी।

अपने स्वार्थ की राजनीति में अपने राजनीतिक साथियों की बलि लेने का यह मामला इस विधानसभा में कोई पहला उदाहरण नहीं है। वर्ष 2019 में सांसद श्रीकांत शिंदे के उकसावे पर कल्याण पूर्व विधानसभा के कई शिवसेना नेताओं ने धनंजय बोड़ारे के नेतृत्व में मिलकर निर्दलीय चुनाव लड़ने का साहसिक निर्णय लिया था, लेकिन चुनाव के अंतिम चरण में शिंदे पिता-पुत्र के पीछे हटने के कारण बोड़ारे को पराजय का सामना करना पड़ा

ऐसे कई उदाहरण हैं जहां सांसद श्रीकांत शिंदे ने पहले इशारा देकर किसी नेता को आगे बढ़ाया और अपनी राजनीतिक रोटी सेंकी, और जब उनका काम निकल गया, तो फिर से सुविधा अनुसार राजनीतिक मजबूरी बताकर अपने ही साथियों का राजनीतिक शिकार कर डाला। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कल्याण डोम्बिवली के नेता शहर के विकास और बेहतर नागरिक सुविधाओं के लिए कब तक कल्याण डोम्बिवली के बाहर के नेताओं के चरणों में शरणागत होकर जनता को जुमले सुनाते रहेंगे।

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