कल्याण (विनोद तिवारी)
महाराष्ट्र सरकार के शिक्षा विभाग ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसके तहत राज्य के सभी विद्यालयों में चिकित्सा आपातकालीन व्यवस्थाएँ स्थापित की जाएँगी। यह कदम विद्यार्थियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें विद्यालय में ही प्राथमिक चिकित्सा किट और मनोवैज्ञानिक परामर्श की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा सकें।
विद्यालयों में छात्र औसतन छह से सात घंटे बिताते हैं, और यदि किसी छात्र की तबियत बिगड़ती है या कोई दुर्घटना घटती है, तो त्वरित चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है। इसी को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार ने आदेश दिया है कि सभी विद्यालयों को विद्यार्थियों की संख्या के अनुसार प्राथमिक चिकित्सा किट और स्वास्थ्य कक्ष की सुविधाएँ उपलब्ध करानी होंगी।
नए आदेश के अनुसार, विद्यालयों में मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता की नियुक्ति अनिवार्य होगी, ताकि विद्यार्थियों को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित उचित सलाह मिल सके। इसके अलावा, विद्यालय प्रशासन को हर वर्ष चिकित्सा प्रशिक्षण शिविर का आयोजन करना होगा, जिसमें विद्यार्थियों और कर्मचारियों को आपातकालीन स्थितियों में आवश्यक चिकित्सा तकनीकों जैसे कृत्रिम श्वसन और कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
विद्यालय परिसर में निकटवर्ती सरकारी और निजी अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों, और एम्बुलेंस के संपर्क नंबरों की जानकारी प्रदर्शित की जाएगी। इसके साथ ही, विद्यालय को निकटवर्ती चिकित्सक के साथ सेवा अनुबंध करना होगा, ताकि आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सक विद्यालय में आकर उपचार प्रदान कर सकें। मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने के लिए विद्यालयों में कार्यशालाएँ और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाएगा।
इस महत्वपूर्ण आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए विद्यालय के संचालकों को हर महीने रिपोर्ट एकत्रित करने और संबंधित शिक्षण अधिकारियों के मार्गदर्शन में कार्य करने का निर्देश दिया गया है।
यह कदम निश्चित रूप से विद्यार्थियों की सुरक्षा और कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है।












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