डेली डोज ! विनोद तिवारी
कल्याण :
कल्याण पूर्व के सिद्धिविनायक अस्पताल (Siddhivinayak Hospital) के डॉ. ज्योति सिंह और देवेंद्र सिंह पर अपने ही पार्टनरों का लखनऊ प्रोजेक्ट में हिस्सा हड़पने के लिए फर्जी एड्रेस पर फर्जी मुकदमा दर्ज कराने का गंभीर आरोप लगा है। यह मामला तब सामने आया जब मुंब्रा पुलिस स्टेशन में 16 जनवरी 2025 को देवेंद्र सिंह की शिकायत पर 3 करोड़ की धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया।
शिकायत में बताया गया है कि डॉ. ज्योति सिंह और देवेंद्र सिंह ने सरकार को गुमराह कर फर्जी तरीके से सरकारी पद पाने के लिए रिश्वत पहुंचने के लिए दिवा के अपने NGO के कार्यालय में अपने पार्टनर को एकसाथ 3 करोड़ रुपये कैश देने का दावा किया था। यह कार्यालय जितेन हाइट्स, शॉप नं 3, म्हसोबा चौक, दिवा आगासन रोड, दिवा पूर्व में बताया गया था।

हालांकि, हाल ही में “RTI के माध्यम से प्राप्त जानकारी में ठाणे महानगरपालिका के दिवा प्रभाग समिति के टैक्स विभाग ने स्पष्ट किया कि जितेन हाइट्स नाम की कोई इमारत परिसर में है ही नहीं।”
इस जानकारी ने मुंब्रा पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर दिया है। सवाल यह उठता है कि जब NGO के कार्यालय का पता ही फर्जी है, तो पुलिस ने बिना जांच किए 6 लोगों पर 420 का मामला किस आधार पर दर्ज किया?
फर्जी एड्रेस और फर्जी पुलिस FIR के शिकार बने राजेश उपाध्याय का कहना है कि उन्होंने पहले भी पुलिस और न्यायालय में कहा है कि डॉ. ज्योति सिंह और देवेंद्र सिंह ने पुलिस को रिश्वत देकर फर्जी तरीके से मामला दर्ज कराया है, ताकि लखनऊ प्रोजेक्ट में उनके हिस्से को हड़प सकें।
सूत्रों के अनुसार, डॉ. ज्योति सिंह और देवेंद्र सिंह ने अपने परिचित प्रवीन सिंह और राजेश उपाध्याय को लखनऊ में एक प्रॉपर्टी प्रोजेक्ट में मिलकर व्यापार करने का ऑफर दिया था। दोनों ने विश्वास करके लखनऊ में करोड़ों मुनाफा वाला प्रोजेक्ट बनाया। लेकिन जब डॉ. दंपत्ति ने मुनाफे को देखकर अपने इरादे बदल लिए, तो उन्होंने राजेश उपाध्याय और प्रवीन सिंह को प्रोजेक्ट से हटाने के लिए कई उपाय किए, जिसमें झूठे मुकदमे और धमकियां शामिल थीं।
प्रवीन सिंह ने आरोप लगाया कि दिवा में कभी भी आश्रय NGO या डॉक्टर दंपत्ति का कोई कार्यालय था ही नहीं फिर भी डॉ. ज्योति सिंह और देवेंद्र सिंह ने फर्जी एड्रेस पर फर्जी कहानी गढ़कर, रिश्वत देकर मुंब्रा पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया। RTI से मिली जानकारी के बाद यह सवाल उठता है कि जब पुलिस शिकायत में NGO कार्यालय का बताया गया एड्रेस ही फर्जी है, तो 3 करोड़ कैश का मामला कैसे बना? क्या 3 करोड़ कैश इकठ्ठा करने के श्रोत की पुलिस ने जांच किया ?
प्रवीन सिंह और राजेश उपाध्याय का मानना है कि सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। वे न्याय के लिए लड़ेंगे और फर्जी FIR दर्ज कराने के लिए डॉ. ज्योति सिंह, देवेंद्र सिंह और पुलिस अधिकारियों को सजा दिलवाने का संकल्प लेते हैं।
सूत्रों के हवाले से यह भी कहा जा रहा है कि किसी बदनाम वेबपोर्टल पत्रकार ने बड़े पुलिस अधिकारी से दलाली कर इस फर्जी मामले को दर्ज करवाने में मदद की थी। यह मामला न केवल व्यक्तिगत हितों के टकराव का उदाहरण है, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली की कमजोरियों को भी उजागर करता है। यदि पुलिस ने बिना उचित जांच के फर्जी मामला दर्ज किया है, तो यह न केवल कानून के प्रति अवमानना है, बल्कि समाज में पुलिस के प्रति विश्वास को भी कमजोर करता है। इस प्रकार के मामलों में पुलिस के बड़े अधिकारीयों द्वारा मामले की त्वरित और निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है ताकि न्याय सुनिश्चित किया जा सके।












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